2/11/2015

प्रभा खेतान का पत्र अभिज्ञात के नाम

लेखकों के पत्र
(पत्र का स्केन जल्द इस पोस्ट के साथ होगा)
पहला काव्य संग्रह एक अदहन हमारे अंदर के बारे में लिखने की सोच ही रही थी, किन्तु तात्कालिन व्यस्तता के चलते लिख नहीं पाई तब तक तुम्हारी नई काव्य कृति सरापता हूं मिली। शुरू से अंत तक एक ही बैठक में पढ गई। क्या कहूं इन कविताओं के बारे में-एक अदहन भी और पीढी के अंतर की जिजीविषा भी। खासकर आमुख कविता सरापता हूं बार-बार सालती है-' मैं इस घर में नहीं रहूंगा /एक भी पल/ जहां मेरा अस्तित्व छायाभास है तुम्हारा/ ओ मेरे पूर्वज।
क्या पीढी का अन्तर ही इसका कारण है या हमारे समाज की समझ जो इन कविताओं में सामने आया है, कि एक युवा अतीत को ही नहीं, अपने पूर्वज को श्रापने के लिए मजबूर हो जाता है। कहीं कुछ जरूर छूट सा गया है। और वही छूटा हुआ आज एक दरार की तरह हमारे सामने छा गया है। लेकिन जो सबसे बडी बात तुममें मैंने देखी है, वह है वैश्विक भावना। वसुधाय कुटुम्ब की यह महती भावना ही तुम्हारी अभिव्यक्ति है। जब तुम लिखते हो- मेरे हिस्से के शब्द कोषों से/ मातृभूमि/ खारिज करने की कोशिश में हूं। और यहीं पर कविता सफल हुई है।
29-5-92
4-बी लिटल रसेल स्ट्रीट, कलकत्ता 700071

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