11/10/2017

कहानी

इस तरह से आती है मौत
कहानी-अभिज्ञात

साभारः बहुवचन,अप्रैल-जून 2013
दरवाज़े से प्रवेश करते समय पहले राधेश्याम अग्रवाल की तोंद प्रवेश करती है फिर वह दिखायी देता है। उसका एक कारण तो यही समझ में आता है कि वह खाता है तो फिर खाता है। पूरे इतमीनान के साथ। यह इतमीनान सिर्फ़ घर में खाते वक़्त ही नहीं होता बल्कि कार्यालय में भी। अपने परिचितों के बीच वह उन लोगों में गिना जाता है जो जीने के लिए नहीं खाते बल्क़ि खाने के लिए जीते हैं। घर से वह टिफ़िन लेकर आता है बाकायदा चार डिब्बे वाला। चावल, सब्ज़ी, अचार, दाल, रोटी, पापड़, मिठाई। सलाद और फल भी। वह फोल्ड किया हुआ चाकू निकालता है और..आगे पढ़ें

मैं सूर्य देखना चाहता हूं
कहानी-अभिज्ञात

पाखी,मई,2013
पहले उसकी ज़िन्दगी में ऐसा नहीं था। सूर्य पूरे इतमीनान से सदियों से जी रहा था। कोई बड़ी हलचल उसकी ज़िन्दगी में नहीं मची थी। उसका जल-जीवन तमाम तिलस्मों से भरा हुआ था, लेकिन उसमें कोई विस्मय नहीं था। एक जानी-पहचानी सी दुनिया थी। एक खास तरह का नीलापन उसके चारों तरफ़ पसरा पड़ा था। यह तो मुश्किल से चार-पांच सौ साल के एक कछुए ने उसकी ज़िन्दगी को बदल कर रख दिया था। कछुए ने पृथ्वी से लौटकर हाल की नयी खोजों के बारे में उसे बताया तब जाकर उसे अपनी पुरानी दुनिया का पता चला..आगे पढ़ें





कहानी-अभिज्ञात 
जब बेचन अड़तीस का हुआ तो एकाएक बेचैन हो उठा। उसके पिता ने उससे जो कुछ अंतिम समय में कहा था वह याद आने लगा। उसके पिता ने उससे वचन लिया था कि वह गांव के स्कूल में एक दरवाज़ा लगायेगा। उसके पिता स्कूल में शिक्षक थे और पेड़ के नीचे लगने वाला स्कूल उनके जीते जी दो कमरों के स्कूल में तब्दील हो चुका था। गांव के गरीब बच्चों की फीस से ही उनका और उनके एक सहकर्मी का वेतन मिलता था जिससे उनके घर का चूल्हा ही मुश्किल से जलता था। इतना नहीं बचता था कि वे उसमें से स्कूल को भी कुछ दे पायें। अलबत्ता एक विधवा ने अपनी ज़मीन स्कूल के नाम दे दी थी जिस पर स्कूल चलता था...आगे पढ़ें 




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