3/18/2015

विजय बहादुर सिंह का पत्र अभिज्ञात के नाम

29 निराला नगर, दुष्यन्त मार्ग, भोपाल-3
19.12.11
प्रिय अभिज्ञात जी,
सप्रेम नमस्कार.
आपकी कविता-पुस्तक मिली। उलट-पुलट गया। कहने में तो कोई ताज़गी नहीं पर सोच में और अनुभवों में नयापन जरूर है। इसके लिए बधाई। कहानियों में जैसी कल्पनाशीलता का प्रमाण आप देते हैं, उसके उदाहरण यहां नहीं के बराबर हैं। बात को फैलाना और अर्थ की आवृत्ति कविता के प्रभाव को कमजोर करता है। आप यह खूब करते हैं। लेकिन क्यों? आपकी एक कविता है 'खोयी हुई नींद'। उसे पढ़ते हुए मैंने मूल पुस्तक में ही कई पंक्तियां छांट दीं। जरा पढ़ें, पृष्ठ 45- कुछ भी हासिल करने से पहले
खोनी होती है नींद
दुनिया से लड़ने से पहले
लड़ना पड़ता है नींद से (4 थी)
कुछ पा चुकने के बाद
सबसे पहले चाहिए होती है
अपनी खोई हुई नींद
लेकिन वह नहीं आती
तो फिर नहीं आती।
इसमें भी अगर मुझे मौका मिलता और यह ख़याल मेरे हाथ आता तो चौथी पंक्ति यों होती(लड़ना पड़ता है अपने आपसे) 5 वीं तो ठीक पर 6 वीं-सातवीं में सुधार की पर्याप्त गुंजाइशें हैं। 8 वीं 9वीं में कुछ यों करता-लेकिन तक तक वह जा चुकी होती है काफी दूर।
फिर भी कविताओं को पढ़ते हुए जो नये अनुभव-समूह और विचार-तरंगें हैं, वे अच्छी लगती हैं, बावजूद अपनी अनगढ़ताओं के। हां, 'हावड़ा ब्रिज' जैसी रचनाएं आपकी काव्य-प्रतिभा की ताकत और संभावनाओं की ओर इशारा करती है तथापि डायनासोर वाली कल्पना से न जाने क्यों मन सहमत नहीं हो पा रहा है।
संग्रह की कविताओ में पढ़ा ले जाने का आकर्षण है, यह मैंने महसूस किया है। यह भी कि आपका कवि स्वाधीन है और किसी आग्रह से पहले से बंधा नहीं है। यही आपका सौन्दर्य है जो जीवनानुभवों के प्रति हमारा ध्यान खींचता है। पाठक की एकरसता और काव्य-ऊब टूटती है।
यह भी आप अच्छा कर रहे हैं जो मुक्तवृत्तों को संगीतात्मक लयात्मकता की ओर ला रहे हैं। कतिपय नये शब्द-प्रयोग, जैसे 'संवाद रहित ठंडक' (पृष्ठ 64), 'अर्ध विराम' का सरलीकरण (पृष्ठ 30), 'नुकीले संतोष' (31), 'मुलायम आस्वाद' (31)। मुझे ये पंक्तियां खूब मार्मिक लगीं-'खेतों को कितना सालता होगा बैलों का अभाव'(58)। सबसे पसंद आयी कविता-'निहितार्थ के लिए'। पर यह और भी अच्छा लगा कि आपने एक कवि के रूप में अपनी संवेदना की आंखें खोल रखी है और वे अपने अनुभवों की ताज़गी से भरी हुई हैं। बधाई। बहुत सारे संग्रहों में यह एक बेहद पठनीय संग्रह है।
-विजय बहादुर सिंह